भारत देश का नाम किसके नाम पर पड़ा?
हमारे देश का नाम भारत किसके नाम पर पड़ा? - After whom is the name of India?, भरत का जीवन परिचय, दुष्यंत पुत्र भरत का जीवन चरित, Bharat ka Mahan vyaktitva.
"होनहार बिरवान के होते चिकने पात"
हमारे देश में अनेक महापुरुष हुए हैं। इन महापुरुषों ने अपने बचपन में ही ऐसे कार्य किए, जिन्हें देखकर उनके महान होने का आभास होने लगा था।
ऐसे ही एक वीर प्रतापी वह साहसी बालक भरत थे।
दुष्यंत का गंधर्व विवाह :
आश्रम में ऋषि कण्व के न होने के कारण राजा दुष्यंत शकुन्तला को अपने साथ नहीं ले जा सके। उन्होंने शकुन्तला को एक अंगूठी दे दी जो उनके विवाह की निशानी थी।
दुर्वासा ऋषि का शाप :
शकुन्तला की सखियों ने क्रोधित ऋषि से अनजाने में उससे हुए अपराध को क्षमा करने के लिए निवेदन किया।
ऋषि ने कहा - मेरे शाप का प्रभाव समाप्त तो नहीं हो सकता किंतु दुष्यंत द्वारा दी गई अंगूठी को दिखाने से उन्हें अपने विवाह का स्मरण हो जाएगा।
भरत का जन्म कब हुआ :
शकुंतला के पास राजा द्वारा दी गई अंगूठी खो गयी थी। शाप के प्रभाव से राजा दुष्यंत अपने विवाह की घटना भूल चुके थे। वे शकुंतला को पहचान नहीं सके। निराश शकुंतला को उसकी मां मेनका ने कश्यप ऋषि के आश्रम में रखा। उसी समय वह गर्भवती थी। उसी आश्रम में दुष्यंत के पुत्र भरत का जन्म हुआ।
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Bharat |
भरत बचपन से ही वीर और साहसी थे।
वह वन के हिंसक पशुओं के साथ खेलते और सिंह के बच्चों को पकड़ कर उनके दांत गिनते थे। उनके इस निर्भीक कार्यों से आश्रम वासी उन्हें सर्वदमन कहकर पुकारते थे।
समय का चक्र ऐसा चला की राजा को वह अंगूठी मिल गयी जो उन्होंने शकुंतला को विवाह के प्रतीक के रूप में दी थी। अंगूठी देखते ही उनको अपने विवाह की याद आ गयी।
शकुंतला की खोज में भटकते हुए एक दिन वह कश्यप ऋषि के आश्रम में पहुंच गए जहां शकुंतला रहती थी। उन्होंने बालक भारत को शेर के बच्चों के साथ खेलते देखा। राजा दुष्यंत ने ऐसे साहसी बालक को पहले कभी नहीं देखा था। बालक के चेहरे पर अद्भुत तेज था। दुष्यंत ने बालक भारत से उसका परिचय पूछा भारत ने अपना और अपनी मां का नाम बता दिया।
दुष्यंत ने भरत का परिचय जानकर उसे गले से लगा लिया और शकुंतला के पास गये। अपने पुत्र एवं पत्नी को लेकर वह हस्तिनापुर वापस लौट आये।
हस्तिनापुर में भारत की शिक्षा दीक्षा हुई। दुष्यंत के बाद भरत राजा बने। उन्होंने अपने राज्य की सीमा का विस्तार संपूर्ण आर्यवर्त (उत्तरी और मध्य भारत) में कर लिया। अश्वमेघ यज्ञ (एक प्रसिद्ध वैदिक यज्ञ, इसमें एक घोड़ा छोड़ा जाता था, जिसके साथ सम्राट की सेना रहती थी। सभी देश के राजा उस घोड़े का स्वागत करते थे। यदि कोई राजा घोड़े को पकड़ लेता, तो सम्राट की सेना उससे युद्ध करती थी। विजयी घोड़ा वापस आने पर हवन, दान, भोज आदि का कार्यक्रम होता था और सम्राट को चक्रवर्ती सम्राट की उपाधि दी जाती थी। राजा रामचंद्र जी ने भी अश्वमेध यज्ञ किया था।) यज्ञ कर उन्होंने चक्रवर्ती सम्राट की उपाधि प्राप्त की।
चक्रवर्ती सम्राट भारत ने राज्य में सुदृढ़ न्याय व्यवस्था और सामाजिक एकता स्थापित की। उन्होंने सुविधा के लिए अपने शासन को विभिन्न भागो में बैठ कर प्रशासन में नियंत्रण स्थापित किया। भरत की शासन प्रणाली से उनकी कीर्ति सारे संसार में फैल गयी।
सिंहों के साथ खेलने वाले इस भरत के नाम पर ही हमारे देश का नाम भारत पड़ा।
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