महर्षि दधीचि का महान व्यक्तित्व - Maharishi Dadhichi
महर्षि दधीचि का महान व्यक्तित्व - Maharishi Dadhichi
महर्षि दधीचि - Maharishi Dadhichi कौन थे?
हमारे देश में ऐसे अनेक पुरुष और नारियां हुई हुई है, जिन्होंने दूसरों की सहायता और भलाई के लिए स्वयं कष्ट सहे हैं।
ऐसे ही महान परोपकारी पुरुषों में महर्षि दधीचि का नाम आदर के साथ लिया जाता है।
महर्षि दधीचि ज्ञानी थे। उनकी विद्वता की प्रसिद्धि देश के कोने-कोने तक फैली हुई थी। दूर-दूर से विद्यार्थी तथा सभी से प्रेम का व्यवहार करते थे।
Maharishi Dadhichi का महान व्यक्तित्व :
उन्हीं दिनों देवताओं और असुर में लड़ाई छिड़ गयी। देवता धर्म का राज्य बनाए रखने का प्रयास कर रहे थे जिससे लोगों का हित होता रहे। असुर के कार्य और व्यवहार ठीक नहीं थे। लोगों को तरह-तरह से सताया करते थे। वे अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए देवताओं से लड़ रहे थे। देवताओं को इससे चिंता हुई। देवताओं के हार जाने का अर्थ था असुरों का राज्य स्थापित हो जाना। वे पूरी शक्ति से लड़ रहे थे। बहुत दिनों से यह लड़ाई चल रही थी। देवताओं ने असुरों को हराने के अनेक प्रयत्न किए किंतु सफल नहीं हुए।
हताश देवतागण अपने राजा इंद्र के पास गए और बोले राजन - हमें युद्ध में असफलता के आसार नहीं दिखाएं पड़ते,
क्यों न इस विषय में ब्रह्मा जी से कोई उपाय पूछें ?
इंद्र देवताओं की सलाह मानकर ब्रह्मा जी के पास गए। इंद्र ने उन्हें अपनी चिंता से अवगत कराया।
ब्रह्माजी बोले - " हे देवराज! त्याग में इतनी शक्ति होती है की उसके बल पर किसी भी असंभव कार्य को संभव बनाया जा सकता है लेकिन दुख है कि इस समय आप में से कोई भी इस मार्ग पर नहीं चल रहा है।"
ब्रह्मा जी की बातें सुनकर देवराज इंद्र चिंतित हो गए,
वे बोले - फिर क्या होगा ? श्रीमान!
क्या यह सृष्टि असुरों के हाथ में चली जाएगी ?
यदि ऐसा हुआ तो बहुत बड़ा अनर्थ होगा।
ब्रह्मा जी ने कहा - "आप निराश न हों!
असुरों पर विजय पानी का एक उपाय है, यदि आप प्रयास करें तो निश्चय ही देवताओं की जीत होगी।
इंद्र ने उतावले होते हुए कहा - श्रीमान! शीघ्र उपाय बताएं,
हम हर संभव प्रयास करेंगे।
ब्रह्मा जी ने बताया -नैमिषारण्य वन में एक तपस्वी तप कर रहे हैं। उनका नाम दधीचि है उन्होंने तपस्या और साधना के बल पर अपने अंदर अपार शक्ति जुटा ली हैं, यदि उनकी अस्थियों से बने अस्त्रों का प्रयोग आप लोग युद्ध में करें तो असुर निश्चित ही परास्त होंगे।
इंद्र ने कहा -"किंतु वे तो जीवित हैं! उनकी अस्थियां भला हमें कैसे मिल सकती हैं ?"
ब्रह्मा ने कहा - "मेरे पास जो उपाय था, मैंने आपको बता दिया। शेष समस्याओं का समाधान स्वयं दधीचि कर सकते हैं।"
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महर्षि दधीचि और देवता |
महर्षि दधीचि को इस युद्ध की जानकारी थी। वे चाहते थे की युद्ध समाप्त हो। सदा शांति चाहने वाले आश्रमवासी लड़ाई झगड़े से दुखी होते हैं। उन्हें आश्चर्य भी होता था कि लोग एक दूसरे से क्यों लड़ते हैं? महर्षि दधीचि को चिंता थी की असुरों के जीतने से अत्याचार बढ़ जाएगा।
देवराज इंद्र झिझकते हुए महर्षि दधीचि के आश्रम में पहुंचे। महर्षि दधीचि उस समय ध्यानावस्था में थे। इंद्र उनके सामने हाथ जोड़कर याचक की मुद्रा में खड़े हो गये। ध्यान भंग होने पर उन्होंने इंद्र को बैठने के लिए कहा, फिर उनसे पूछा - "कहिए देवराज कैसे आना हुआ ?"
इंद्र बोले - महर्षि क्षमा करें, मैंने आपके ध्यान में बाधा पहुंचाई है।
महर्षि आपको ज्ञात होगा, इस समय देवताओं पर असुरों ने चढ़ाई कर दी है। वे तरह-तरह के अत्याचार कर रहे हैं। उनका सेनापति वृत्रासुर बहुत ही क्रूर और अत्याचारी है, उससे देवता हार रहे हैं।
महर्षि दधीचि ने कहा - मेरी भी चिंता का यही विषय है, आप ब्रह्मा जी से बात क्यों नहीं करते ?
इंद्र ने कहा - मैं उनसे बात कर चुका हूं।
उन्होंने उपाय भी बताया है किंतु..….? किंतु..... किंतु क्या ? देवराज!
आप रुक क्यों गये ? साता बताइए।
महर्षि ने जब यह कहा तो इंद्र ने कहा - हे महर्षि!
ब्रह्मा जी ने बताया कि आपकी हस्तियों से अस्त्र बना जाए तो वह वज्र के समान होगा। वृत्रासुर को माने है तू ऐसे ही वज्रास्त्र की आवश्यकता है।
इंद्र की बात सुनकर ही महर्षि अतिथि का चेहरा कांतिमय हो उठा। उन्होंने सोचा, मैं धन्य हो गया। उनका रोम-रोम पुलकित हो गया।
प्रशंसापूर्वक महर्षि दधीचि बोले - देवराज आपकी इच्छा अवश्य पूरी होगी। मेरे लिए इससे ज्यादा गौरव की बात क्या होगी ?
आप निश्चय ही मेरी अस्थियों से वज्र बनायें और असुरों का विनाश कर चारों और शांति स्थापित करें।
दधीचि ने भय एवं चिंता से मुक्त होकर अपने नेत्र बंद कर लिये। उन्होंने योग बल से अपने प्राणों को शरीर से अलग कर लिया। उनका शरीर निर्जीव हो गया। देवराज इंद्र आदर से उनके मृत शरीर को प्रणाम कर अपने साथ ले आये। महर्षि की अस्थियों से वज्र बना, जिसके प्रहार से वृत्रासुर मारा गया। असुर पराजित हुए और देवताओं की जीत हुई।
महर्षि दधीचि को उनके त्याग के लिये आज भी लोग श्रद्धा से याद करते हैं। नैमिषारण्य में प्रतिवर्ष फाल्गुन महा में उनकी स्मृति में मेले का आयोजन होता है। यह मेला महर्षि दधीचि के त्याग और मानव सेवा के भावों की याद दिलाता है।
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