वर्ण (Varn), वर्णमाला (Varnamaala) और स्वर (Svar) किसे कहते हैं?
भाषा संस्कृत के भाष् शब्द से बना है। भाष् का अर्थ है बोलना।
भाषा की सार्थक इकाई वाक्य है। वाक्य से छोटी इकाई उपवाक्य, उपवाक्य से छोटी इकाई पदबंध, पदबंध से छोटी इकाई पद (शब्द), पद से छोटी इकाई अक्षर (Syllable) और अक्षर से छोटी इकाई ध्वनि या वर्ण (Letter) है।
जैसे -: राम शब्द में 2 अक्षर (रा म), एवं 4 वर्ण (र् आ म् अ) हैं।
ध्वनि, वर्ण का उच्चरित रूप होता है। और वर्ण, ध्वनि का लिखित रूप होता हैं।
वर्णमाला (Alphabet) -: वर्णों के व्यवस्थित समूह को 'वर्णमाला' कहते हैं।
• स्वर (Vowels)
• व्यंजन (Consonants)
लेखन के आधार पर 52 वर्ण जिसमें 13 स्वर, 35 व्यंजन 4 संयुक्त व्यंजन होते हैं।
उच्चारण के आधार पर 10 स्वर :
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।
लेखन के आधार पर 13 स्वर :
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः।
अ, इ, उ, ऋ
दीर्घ स्वर -: जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वर/लघु स्वर से अधिक समय लगता है। उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। इन्हें द्विमात्रिक स्वर भी कहा जाता हैं।
आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, ऑ
प्लुत स्वर -: जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वर से अधिक समय लगता है। उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं। इनका प्रयोग किसी को पुकारने या बुलाने में किया जाता है। प्लुत स्वर उपयोग अधिकतर संस्कृत में किया जाता हैं।
अरेऽऽऽ, राऽऽऽम, ओमऽऽऽ आदि।
संधि स्वर -: अ + अ = आ
इ + इ = ई
उ + उ = ऊ
संयुक्त स्वर -: अ + इ = ए
अ + ए = ऐ
अ + उ = ओ
अ + ओ = औ
इ, ई, ए, ऐ
मध्य स्वर -: जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का मध्य (बीच) भाग काम करता है।
अ
पश्च स्वर -: जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का पश्च (पीछे) भाग काम करता है। ये सभी स्वर 3 की आकृति से बने होते हैं।
आ, उ, ऊ, ओ, औ, ऑ
आ
अर्ध-विवृत (Half-Open) -: जिन स्वरों के उच्चारण में मुख्य-द्वार आधा खुलता हैं।
अ, ऐ, औ, ऑ
अर्ध-संवृत (Half-Close) -: जिन स्वरों के उच्चारण में मुख्य-द्वार आधा बंद रहता हैं।
ए, ओ
संवृत (Close) -: जिन स्वरों के उच्चारण में मुख्य-द्वार लगभग बंद रहता हैं।
इ, ई, उ, ऊ
अ, आ, इ, ई, ए, ऐ
वृतमुखी -: जिन स्वरों के उच्चारण में ओंठ वृतमुखी या गोलाकार होते हैं।
उ, ऊ, ओ, औ, ऑ
जैसे -: अ, आ, इ, सफल, जल, नाम इधर, उधर, आप, अपना, घर आदि।
अनुनासिक स्वर -: जिन स्वरों के उच्चारण में वायु मुँह के साथ-साथ नाक से भी निकलती है।
जैसे -: आँ, आँसू, आँत, गाँव, चिड़ियाँ, आँगन, साँचा आदि।
कंठ्य - अ , आ
तालव्य - इ , ई
ओष्ठ्य - उ , ऊ
मूर्धन्य - ऋ
कंठतालव्य - ए , ऐ
कंठोष्ठय - ओ , औ
जब स्वरतंत्री में कंपन होता है तो सघोष ध्वनियां उत्पन्न होती हैं।
सभी स्वर 'सघोष' ध्वनियां होती हैं।
सभी स्वर अल्प्राण होते हैं। क्योंकि इनका उच्चारण करते समय मुख से कम वायु निकलती हैं।
जैसे -: अं, आं, इं, अंक, अंश, अंग आदि।
विसर्ग -: अ: (ह्) विसर्ग को पार्श्व बिंदु वाला वर्ण कहते हैं।
जैसे -: अतः, स्वतः, दुःख आदि।
परंपरानुसार अनुस्वार अं और अ: को स्वरों के साथ रखा जाता है किंतु ये स्वर ध्वनियां नहीं हैं क्योंकि इनका उच्चारण व्यंजनों के उच्चारण की तरह स्वर (अ) की सहायता से होता है।
यह व्यंजन भी नहीं है क्योंकि इनकी गणना स्वरों के साथ होती है।
दूसरे शब्दों में, अनुस्वार और विसर्ग लेखन की दृष्टि से स्वर, एवं उच्चारण की दृष्टि से व्यंजन होते हैं।
भाषा की सार्थक इकाई वाक्य है। वाक्य से छोटी इकाई उपवाक्य, उपवाक्य से छोटी इकाई पदबंध, पदबंध से छोटी इकाई पद (शब्द), पद से छोटी इकाई अक्षर (Syllable) और अक्षर से छोटी इकाई ध्वनि या वर्ण (Letter) है।
जैसे -: राम शब्द में 2 अक्षर (रा म), एवं 4 वर्ण (र् आ म् अ) हैं।
वर्ण और वर्णमाला किसे कहते हैं?
वर्ण (Letter) -: भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि या वर्ण है।ध्वनि, वर्ण का उच्चरित रूप होता है। और वर्ण, ध्वनि का लिखित रूप होता हैं।
वर्णमाला (Alphabet) -: वर्णों के व्यवस्थित समूह को 'वर्णमाला' कहते हैं।
वर्णमाला के भेद :
वर्णमाला को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया गया है :• स्वर (Vowels)
• व्यंजन (Consonants)
मानक हिंदी वर्णमाला :
मूलतः हिंदी वर्णमाला में उच्चारण के आधार पर 45 वर्ण जिसमें 10 स्वर, 35 व्यंजन होते हैं।लेखन के आधार पर 52 वर्ण जिसमें 13 स्वर, 35 व्यंजन 4 संयुक्त व्यंजन होते हैं।
स्वर (Vowels) किसे कहते हैं?
स्वर (Vowels) -: स्वतंत्र रूप से बोले जानेवाले वर्ण 'स्वर' कहलाते हैं। परंपरागत (कुल) रूप से इनकी संख्या 13 मानी गई है। उच्चारण की दृष्टि से केवल 10 ही स्वर होते हैं।उच्चारण के आधार पर 10 स्वर :
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।
लेखन के आधार पर 13 स्वर :
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः।
• स्वर के प्रकार -:
• उच्चारण/मात्रा के आधार पर :
ह्रस्व स्वर/लघु स्वर -: जिन स्वरों के उच्चारण में बहुत कम समय लगता है। उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं। इन्हें एकमात्रिक स्वर भी कहा जाता हैं। इनकी संख्या 4 होती हैं।अ, इ, उ, ऋ
दीर्घ स्वर -: जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वर/लघु स्वर से अधिक समय लगता है। उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। इन्हें द्विमात्रिक स्वर भी कहा जाता हैं।
आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, ऑ
प्लुत स्वर -: जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वर से अधिक समय लगता है। उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं। इनका प्रयोग किसी को पुकारने या बुलाने में किया जाता है। प्लुत स्वर उपयोग अधिकतर संस्कृत में किया जाता हैं।
अरेऽऽऽ, राऽऽऽम, ओमऽऽऽ आदि।
• रचना के आधार पर :
पूर्ण मूल स्वर -: अ, इ, उसंधि स्वर -: अ + अ = आ
इ + इ = ई
उ + उ = ऊ
संयुक्त स्वर -: अ + इ = ए
अ + ए = ऐ
अ + उ = ओ
अ + ओ = औ
• जीभ के प्रयोग के आधार पर :
अग्र स्वर -: जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का अग्र (आगे) भाग काम करता है।इ, ई, ए, ऐ
मध्य स्वर -: जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का मध्य (बीच) भाग काम करता है।
अ
पश्च स्वर -: जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का पश्च (पीछे) भाग काम करता है। ये सभी स्वर 3 की आकृति से बने होते हैं।
आ, उ, ऊ, ओ, औ, ऑ
• मुख्य-द्वार खुलने के आधार पर :
विवृत (Open) -: जिन स्वरों के उच्चारण में मुख्य-द्वार पूरा खुलता हैं।आ
अर्ध-विवृत (Half-Open) -: जिन स्वरों के उच्चारण में मुख्य-द्वार आधा खुलता हैं।
अ, ऐ, औ, ऑ
अर्ध-संवृत (Half-Close) -: जिन स्वरों के उच्चारण में मुख्य-द्वार आधा बंद रहता हैं।
ए, ओ
संवृत (Close) -: जिन स्वरों के उच्चारण में मुख्य-द्वार लगभग बंद रहता हैं।
इ, ई, उ, ऊ
• होठों की स्थिति के आधार पर :
अवृतमुखी -: जिन स्वरों के उच्चारण में ओंठ वृतमुखी या गोलाकार नहीं होते हैं।अ, आ, इ, ई, ए, ऐ
वृतमुखी -: जिन स्वरों के उच्चारण में ओंठ वृतमुखी या गोलाकार होते हैं।
उ, ऊ, ओ, औ, ऑ
• वायु के नाक व मुंह से निकलने के आधार पर :
निरनुनासिक/मौखिक स्वर -: जिन स्वरों के उच्चारण में वायु केवल मुँह से निकलती है।जैसे -: अ, आ, इ, सफल, जल, नाम इधर, उधर, आप, अपना, घर आदि।
अनुनासिक स्वर -: जिन स्वरों के उच्चारण में वायु मुँह के साथ-साथ नाक से भी निकलती है।
जैसे -: आँ, आँसू, आँत, गाँव, चिड़ियाँ, आँगन, साँचा आदि।
• उच्चारण स्थान के आधार पर :
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हिंदी वर्णमाला के उच्चारण स्थान |
तालव्य - इ , ई
ओष्ठ्य - उ , ऊ
मूर्धन्य - ऋ
कंठतालव्य - ए , ऐ
कंठोष्ठय - ओ , औ
• घोषत्व के आधार पर :
घोष का अर्थ है स्वतंत्रियों में श्वास का कंपन।जब स्वरतंत्री में कंपन होता है तो सघोष ध्वनियां उत्पन्न होती हैं।
सभी स्वर 'सघोष' ध्वनियां होती हैं।
• प्राणत्व के आधार पर :
प्राण का अर्थ है हवा या वायु।सभी स्वर अल्प्राण होते हैं। क्योंकि इनका उच्चारण करते समय मुख से कम वायु निकलती हैं।
• अयोगवाह :
अनुस्वार -: अं (म्) अनुस्वार को शीर्ष बिंदु वाला वर्ण कहते हैं।जैसे -: अं, आं, इं, अंक, अंश, अंग आदि।
विसर्ग -: अ: (ह्) विसर्ग को पार्श्व बिंदु वाला वर्ण कहते हैं।
जैसे -: अतः, स्वतः, दुःख आदि।
परंपरानुसार अनुस्वार अं और अ: को स्वरों के साथ रखा जाता है किंतु ये स्वर ध्वनियां नहीं हैं क्योंकि इनका उच्चारण व्यंजनों के उच्चारण की तरह स्वर (अ) की सहायता से होता है।
यह व्यंजन भी नहीं है क्योंकि इनकी गणना स्वरों के साथ होती है।
दूसरे शब्दों में, अनुस्वार और विसर्ग लेखन की दृष्टि से स्वर, एवं उच्चारण की दृष्टि से व्यंजन होते हैं।
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