व्यंजन-संधि (Vyanjan Sandhi) किसे कहते हैं? उदाहरण सहित।
व्यंजन-संधि (Vyanjan Sandhi) किसे कहते हैं?
व्यंजन-संधि -: व्यंजन के बाद स्वर या व्यंजन आने से जो परिवर्तन/विकार उत्पन्न होता है, उसे व्यंजन संधि कहते हैं।
उदाहरण :
वाक् + ईश = वागीश
षट् + मुख = षण्मुख
वि + छेद = विच्छेद
उत् + चारण = उच्चारण
राम + अयन = रामायण
सूत्र :
प्रथम शब्द का अंतिम वर्ण व्यंजन + द्वितीय शब्द का प्रथम वर्ण स्वर/व्यंजन
उदाहरण :
वाक् + ईश = वागीश
षट् + मुख = षण्मुख
वि + छेद = विच्छेद
उत् + चारण = उच्चारण
राम + अयन = रामायण
सूत्र :
प्रथम शब्द का अंतिम वर्ण व्यंजन + द्वितीय शब्द का प्रथम वर्ण स्वर/व्यंजन
व्यंजन-संधि बनाने के नियम :
1. वर्ग के प्रथम वर्ण का तीसरे वर्ण में परिवर्तन -: किसी वर्ग के प्रथम वर्ण (क् , च् , ट् , त् , प्) का मेल किसी भी स्वर अथवा किसी वर्ग के तीसरे वर्ण (ग , ज , ड , द , ब) या चौथे वर्ण (घ , झ , ढ , ध , भ) अथवा अंत-स्थ व्यंजन (य , र , ल , व) के किसी वर्ण से होने पर वर्ग का प्रथम वर्ण अपने ही वर्ग के तीसरे वर्ण (ग् , ज् , ड् , द् , ब्) में परिवर्तित हो जाता है।
जैसे -
क् का ग् होना :
दिक् + गज = दिग्गज
वाक् + ईश = वागीश
च् का ज् होना :
अच् + आदि = अजादि
अच् + अंत = अजंत
ट् का ड् होना :
षट् + आनन = षडानन
षट् + रिपु = षड्रिपु
त् का द् होना :
भगवत् + भजन = भगवद्भजन
सत् + गुण = सद्गुण
प् का ब् होना :
अप् + ज = अब्ज
सुप् + अंत = सुबंत
जैसे -
क् का ग् होना :
दिक् + गज = दिग्गज
वाक् + ईश = वागीश
च् का ज् होना :
अच् + आदि = अजादि
अच् + अंत = अजंत
ट् का ड् होना :
षट् + आनन = षडानन
षट् + रिपु = षड्रिपु
त् का द् होना :
भगवत् + भजन = भगवद्भजन
सत् + गुण = सद्गुण
प् का ब् होना :
अप् + ज = अब्ज
सुप् + अंत = सुबंत
2. वर्ग के पहले वर्ण का पांचवें वर्ण में परिवर्तन -: यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क् च् ट् त् प्) का मेल किसी अनुनासिक वर्ण से हो तो उनके स्थान पर उसी वर्ग का पांचवांं वर्ण (ङ् ञ् ण् न् म्) हो जाता है।
जैसे -
क् का ङ् होना :
वाक् + मय = वाङ्मय
ट् का ण् होना :
षट् + मुख = षण्मुख
त् का न् होना :
उत् + मत्त = उन्मत्त
तत् + मय = तन्मय
जगत् + नाथ = जगन्नाथ
3. 'छ' संबंधी नियम -: जब किसी भी ह्रस्व-स्वर या 'आ' का मेल 'छ' से होने पर 'छ' से पहले 'च्' जोड़ दिया जाता है।
जैसे -
स्व + छंद = स्वच्छंद
अनु + छेद = अनुच्छेद
वि + छेद = विच्छेद
4. 'त्' संबंधी नियम -:
(I) 'त्' के बाद यदि 'च' , 'छ' हो तो 'त्' का 'च्' हो जाता है।
जैसे -
उत् + चारण = उच्चारण
जगत् + छाया = जगच्छाया
(II) 'त्' के बाद यदि 'ज' , 'झ' हो तो 'त्' का 'ज्' हो जाता है।
जैसे -
सत् + जन = सज्जन
उत् + झटिका = उज्झटिका
(III) 'त्' के बाद यदि 'ट' , 'ड' हो तो 'त्' क्रमशः 'ट्' , 'ड्' में परिवर्तित जाता है।
जैसे -
बृहत् + टीका = बृहट्टीका
उत् + डयन = उतड्डयन
(IV) 'त्' के बाद यदि 'ल' हो तो 'त्' का 'ल्' हो जाता है।
जैसे -
उत् + लास = उल्लास
उत् + लेख = उल्लेख
(V) 'त्' के बाद यदि 'श्' हो तो 'त्' का 'च्' और 'श्' का 'छ्' हो जाता है।
जैसे -
उत् + श्वास = उच्छ्वास
सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र
(VI) 'त्' के बाद यदि 'ह' हो तो 'त्' के स्थान पर 'द्' और 'ह' के स्थान पर 'ध' हो जाता है।
जैसे -
तत् + हित = तद्धित
उत् + हृत = उध्दृत
5. 'न' संबंधी नियम -: यदि 'ऋ' , 'र' , 'ष' के बाद 'न' व्यंजन आता है तो 'न' का 'ण' हो जाता है।
जैसे -
परि + नाम = परिणाम
प्र + मान = प्रमाण
राम + अयन = रामायण
भूष + अन = भूषण
6. 'म' संबंधी नियम -:
(I) 'म्' का मेल 'क' से 'म' तक के किसी भी व्यंजन वर्ग से होने पर 'म्' उसी वर्ग के पंचमाक्षर (अनुस्वार) में परिवर्तित जाता है।
जैसे -
सम् + कलन = संकलन
सम् + गति = संगति
सम् + चय = संचय
सम् + पूर्ण = संपूर्ण
(II) 'म्' का मेल यदि 'य' , 'र' , 'ल' , 'व' , 'श' , 'ष' , 'स' , 'ह' से हो तो 'म्' हमेशा अनुस्वार (अं) ही होता है।
जैसे -
सम् + योग = संयोग
सम् + रक्षक = संरक्षक
सम् + लाप = संलाप
सम् + विधान = संविधान
सम् + शय = संशय
सम् + सार = संसार
सम् + हार = संहार
(III) 'म्' के बाद 'म' आने पर इसमें कोई परिवर्तन नहीं होता है।
जैसे -
सम् + मान = सम्मान
सम् + मति = सम्मति
नोट : आजकल सुविधा के लिए पंचमाक्षर के स्थान पर प्राय: अनुस्वार (अं) का ही प्रयोग होता है।
7. 'स' संबंधी नियम -: 'स' से पहले 'अ' या 'आ' से भिन्न स्वर हो तो 'स' का 'ष' में परिवर्तन हो जाता है।
जैसे -
वि + सम = विषम
वि + साद = विषाद
सु + समा = सुषमा
बहुत सुंदर प्रयास है। बधाई
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