सोच समझ कर करना यारी कविता।
एक बार एक मृग और कौआ
पक्के मित्र थे दोनों भैया।
दोनों ही मिलजुल कर रहते
सुख-दुख एक दूजे से कहते।
एक बार वहां भेड़िया आया।
मृग को देख के वो ललचाया।
दिखने में है कितना प्यारा
खाकर इसको आए नजारा।
सोचा उसने एक उपाय
क्यों न इसको दोस्त बनाए।
पहले जाए इसके पास
बनाए पूरा ही विश्वास।
फिर जब कोई मौका पाए
तो धोखे से इसको खाए।
सोच के गया वो मृग के पास
बांधने लगा उसे विश्वास।
मीठी बातों से रिझाने
लगा वो मृग को अपना बनाने।
बोला यहां पे मैं अकेला
न कोई गुरु न कोई चेला।
नहीं मेरा कोई परिवार
छूट गया सारा घर बार।
कोई न करे मेरे संग बात
रहता हूं चुपचाप दिन-रात।
न मेरे कोई पास में आता
न कोई सुख-दुख बांटता।
बोलो यूं कब तक रहे जाऊं
अकेले कैसे जीवन बताऊं।
सोचा तुमको दोस्त बनाऊं
हो सके तो कुछ काम भी आऊं।
जो हो मैत्री स्वीकार
बाटेंगे हम मिलकर प्यार।
मृग उसकी बातों में आया
उसको अपना दोस्त बनाया।
इतने में कौआ वहां आया
भेड़िया को मृग के घर पाया।
पूछा मृग से उसका नाम
आया वो यहां किस काम।
मृग ने भेड़िए से मिलवाया
और आने का कारण बताया।
लुट गई इसकी दुनिया सारी
करना चाहते हैं मुझसे यारी।
समझ गया सब कौआ स्याना
डाल रहा यह मृग को दाना।
जैसे ही इसको मिलेगा मौका
मृग को यह दे देगा धोखा।
मृग से फिर यूं बोला कौआ
सुनो ध्यान से बात यह भैया।
भेड़िया कितना ताकतवर
बिना मतलब न जाए किसी के घर।
नहीं जानो तुम इसके बारे
दोस्ती न करना बिना विचारे।
उस पे न करना एतबार
जिसका न जानों घर-बार।
भागा वहां से भेड़िया सुनकर
समझा मृग यह सब अब जानकर।
बातें समझना ये सारी
सोच समझ कर करना यारी।
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