प्यासी मैना की कहानी।
एक थी मैना। वह नीम के खोखले में रहती थी। नीम का पेड़ था बगीचे में। बगीचे में एक नल भी लगा था। मैना रोज बगीचे में कीड़े-मकोड़े ढूंढ़ती, उन्हें खाती और नल से पानी पीते।
निराश होकर मैना वहां से उड़ी और आम के पेड़ पर जा बैठी।
वहां उसे एक तोता मिला।
मैना ने कहा, “तोते भाई, मुझे बहुत जोर की प्यास लगी है। पानी कहां मिलेगा?”
तोता बोला, “पास ही जामुन के पेड़ के नीचे खड़ा रखा है। उस घड़े से लोग पानी पीते हैं। कुछ पानी गिर कर पास ही के एक गड्ढे में इकट्ठा हो जाता है। चलो, वहीं चलकर पानी पियें।”
मैना और तोता उड़कर जामुन के पेड़ पर पहुंचे। पेड़ के नीचे घड़ा तो था लेकिन वहां कोई आदमी न था। गड्ढा भी सूखा गया था।
मैना और तोते ने जामुन के पेड़ पर एक कबूतर को देखा। मैना ने कबूतर से पूछा, “कबूतर भाई, हमें बड़ी प्यास लगी है। पीने के लिये पानी कहां मिलेगा?”
कबूतर ने कहा, “वह लाल ईंटों वाला मकान है न, उसके आंगन में रोज एक औरत कपड़े धोती है। फर्श की दरारों में पानी जमा हो जाता है। चलो, वहां चलकर पानी पीते हैं।”
मैना, तोता और कबूतर तीनों साथ-साथ उड़ते हुए लाल ईंटों वाले मकान में जा पहुंचे। लेकिन कपड़े धोने वाली जा चुकी थी। फर्श के दरारों में जमा पानी भी सूख गया था।
तोता परेशानी से बोला, “भाई अब क्या करें?”
“मुझे तो जोर से प्यास लगी है,” मैना ने कहा।
कबूतर बोला, “चलो, इधर-उधर उड़कर पानी ढूंढे़।”
मैना, तोता और कबूतर तीनों साथ-साथ उड़ चले।
कुछ देर बाद वे पीपल के एक पेड़ पर उतरे।
वहां बहुत सारी गौरैयां बैठी थीं। वे सव खूब मजे से चहचहा रही थीं। ‘चिरर-चरर-चिर्रर्रर्र।’
कबूतर गौरैयां के पास जाकर बोला, “गुटर-गू , गुटर-गूं। अरे गोरियों, तुम सब आज इतनी खुश कैसे हो?”
एक गौरैयां ने बताया, “हम सब अभी-अभी नहा कर आए हैं।”
मैना ने अचरज से कहा, “नहा कर! तुम्हें नहाने के लिये पानी कहां से मिला?”
गौरैयां ने कहा, “वह देखो, वहां। आओ, मेरे साथ।”
बाग में बहुत से गमलों में फूल खिले थे और आसपास बहुत-सी झाड़ियां भी उगी हुई थीं।
झाड़ियों की छाया में एक बड़ा-सा मिट्टी का कुंडा पानी से भरा हुआ रखा था।
उन्होंने खुशी-खुशी अपनी चोंच उसके साफ त्र्प्रौर ठंडे पानी में डाल दी और जी भर कर पानी पिया।
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